शीर्षक: प्रतिबद्धता का चरम: रमेश की चतुराई


प्रस्तावना

कभी-कभी जीवन में कुछ लोग अपनी चतुराई और चापलूसी से वह मुकाम हासिल कर लेते हैं, जो दूसरों की कड़ी मेहनत और समर्पण के बावजूद उनकी पहुंच से दूर रहता है। यह कहानी एक ऐसे ही कर्मचारी की है, जिसने न केवल अपने बॉस की आंखों में खास जगह बनाई, बल्कि अपनी चतुराई से पूरे ऑफिस को हैरान कर दिया।


भाग 1: रमेश का परिचय और चतुराई

रमेश का ऑफिस में एक अनोखा रुतबा था।

ऑफिस के आधिकारिक कामों से बचना उसका शौक बन चुका था।

लेकिन बॉस के निजी कामों में वह सबसे आगे रहता।

रमेश की चतुराई ऐसी थी कि वह बॉस की हर जरूरत को उनकी जुबान खोलने से पहले ही समझ लेता।

कर्मचारियों के बीच रमेश की छवि एक चापलूस और चालाक व्यक्ति की थी।

रमेश ऑफिस की पार्टियों से लेकर बॉस के बच्चों के स्कूल प्रोजेक्ट तक, हर जगह सक्रिय रहता।

जहां बाकी कर्मचारी प्रोजेक्ट डेडलाइंस के पीछे भागते रहते, वहीं रमेश बॉस के बेटे की फीस जमा करने और उनकी बेटी की डांस क्लास के कपड़े खरीदने में लगा रहता।


भाग 2: बाकी कर्मचारियों का संघर्ष

रमेश की चतुराई के विपरीत, बाकी कर्मचारी अपने काम में पूरी मेहनत और ईमानदारी से लगे रहते।

वे ऑफिस के हर लक्ष्य को समय पर पूरा करते।

लेकिन उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन नहीं होता।

हर कर्मचारी के लिए रमेश और बॉस का रिश्ता एक पहेली थी।

“रमेश जैसा बनो,” यह बात बॉस अक्सर कहते, जिससे बाकी कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ती।

रमेश के कारण ऑफिस का माहौल विषाक्त हो गया था।


भाग 3: बॉस और रमेश का विशेष रिश्ता

बॉस के साथ रमेश का रिश्ता बहुत खास था।

बॉस ने कभी रमेश को डांटते हुए नहीं देखा गया।

रमेश की हर गलती को नजरअंदाज कर दिया जाता।

ऑफिस के किसी कर्मचारी को प्रमोशन या बोनस चाहिए होता, तो उसे रमेश के जरिए बॉस तक अपनी बात पहुंचानी पड़ती।


भाग 4: दुखद खबर

एक दिन सुबह ऑफिस में खबर आई कि बॉस की मां का निधन हो गया।

पूरे ऑफिस में शोक का माहौल छा गया।

सभी कर्मचारियों ने बॉस के घर जाकर उनकी दुख की घड़ी में साथ देने का फैसला किया।

रमेश की अनुपस्थिति पर सभी हैरान थे।

“रमेश कहां है?” यह सवाल हर किसी की जुबान पर था।

जो व्यक्ति हर छोटे-बड़े मौके पर बॉस के साथ रहता था, वह इस दुखद घड़ी में गायब था।


भाग 5: श्मशान की स्थिति

बॉस की मां के अंतिम संस्कार के लिए एक सजाया हुआ वाहन तैयार किया गया।

बॉस के साथ सभी कर्मचारी श्मशान पहुंचे।

वहां पहुंचने पर पता चला कि पहले से 16 शव दाह संस्कार के लिए कतार में थे।

श्मशान के कर्मचारी ने बताया,
“हर शव को जलने में एक घंटे का समय लगता है। आपका नंबर सूर्यास्त के बाद ही आएगा।”

बॉस का चेहरा गुस्से और चिंता से भर गया।

बाकी कर्मचारी भी परेशान हो गए।

किसी को समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का समाधान कैसे किया जाए।


भाग 6: अप्रत्याशित घटना

तभी कुछ ऐसा हुआ, जिसने सभी को चौंका दिया।

कतार में पड़े 16वें शव में से एक “शव” अचानक उठ बैठा।

वहां मौजूद लोग डर के मारे इधर-उधर भागने लगे।

“यह भूत है!” किसी ने चिल्लाकर कहा।

बॉस और कर्मचारी भी कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गए।
लेकिन जब ध्यान से देखा गया, तो पता चला कि वह “शव” कोई और नहीं, बल्कि रमेश था।


भाग 7: रमेश का स्पष्टीकरण

रमेश ने बॉस के पैर छूते हुए कहा,
“सर, माफ कीजिए कि मैं सुबह आपके घर नहीं आ पाया। जैसे ही मैंने सुना कि माताजी का निधन हो गया है, मुझे ख्याल आया कि श्मशान में लंबी कतार हो सकती है। इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं यहां सुबह से ही ‘शव’ बनकर लेटा रहूं, तो आपकी माताजी का नंबर जल्दी आ जाएगा।”

रमेश ने आगे बताया,
“मैं सुबह 8 बजे से यहां लेटा हुआ हूं, ताकि आपका काम बिना किसी परेशानी के जल्दी हो सके।”


भाग 8: कर्मचारियों की प्रतिक्रिया

रमेश की यह बात सुनकर कर्मचारी हक्के-बक्के रह गए।

किसी ने इसे “चतुराई की हद” कहा।

तो किसी ने सोचा कि रमेश ने सिर्फ बॉस को खुश करने के लिए यह सब किया।

कुछ कर्मचारी गुस्से में थे, तो कुछ रमेश की योजना की गहराई को समझने की कोशिश कर रहे थे।


भाग 9: बॉस की प्रतिक्रिया

बॉस की आंखों में खुशी और गर्व झलक रहा था।

उन्होंने रमेश को गले से लगाया और कहा,
“तुमने जो किया, वह कोई और नहीं कर सकता था। तुम मेरे सबसे भरोसेमंद कर्मचारी हो।”

इसके विपरीत, बाकी कर्मचारियों को उन्होंने घूरते हुए देखा। उनकी नजरें जैसे कह रही थीं, “सीखो कुछ रमेश से।”


भाग 10: ऑफिस में बदलाव

इस घटना के बाद ऑफिस का माहौल पूरी तरह बदल गया।

रमेश का कद और भी बढ़ गया।

ऑफिस में लोग उसे “बॉस का सबसे खास” कहकर बुलाने लगे।

कई कर्मचारियों ने रमेश की तरह बॉस को खुश करने की कोशिश शुरू कर दी।

लेकिन कई कर्मचारी अब भी अपनी मेहनत और ईमानदारी से काम करते रहे, यह जानते हुए कि उनकी मेहनत का कभी सही मूल्यांकन नहीं होगा।


निष्कर्ष

यह कहानी दिखाती है कि चतुराई और चापलूसी से कुछ लोग वह हासिल कर लेते हैं, जो अन्य लोग अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से भी नहीं कर पाते।
रमेश की यह चतुराई भले ही असामान्य थी, लेकिन उसने यह साबित कर दिया कि वह बॉस की नजरों में सबसे खास है।

यह कहानी एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है:
“चतुराई और अवसरवादिता का सही उपयोग आपकी राह आसान बना सकता है, लेकिन इससे ऑफिस का माहौल भी विषाक्त हो सकता है।”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top